एक पहेली जैसा जीवन
खुला व्योम लगता है जीवन
नील गगन सा लगता जीवन
चाहत ...जैसे इन्द्रधनुष
कुछ ही पल में लुप्तप्राय
छल देता रंगीन स्वप्न
चाहत एक अनोखा बादल
हर पल अपना रुप बदलता
क्षण भर मेँ लगता कुछ और
छल देता रंगीन स्वप्न
कौन रचयिता किसकी रचना
इस जीवन की यही विडम्बना
समय पृष्ठ पर होता अंकित
अवसाद भरा रंगीन स्वप्न
शीतल जल सा लगता प्रियकर
लेकिन छलक रहा है हर क्षण
जीवन का प्याला हाथोँ में
छलक रहा रँगीन स्वप्न
श्वेत चमकता मोती जैसा
वक्ष चीर सागर से निकला
विश्राम नहीँ उसकी नियति मेँ
बिखर रहा रंगीन स्वप्न
चिन्तन की धारा है अनुपम
मन की डोर अनन्त व्योम
जीवन में कटती है जब
छिन्न भिन्न रंगीन स्वप्न
मन की व्याकुल गति निराली
कहीं तीव्र तो कहीं क्षीण
क्षीण अगर है तो मृत्यु बन
चिर निद्रा रंगीन स्वप्न
एक पहेली जैसा जीवन
खुला व्योम लगता है जीवन
Monday, 16 April 2012
Wednesday, 28 March 2012
दो शब्द
मन मेँ विचारोँ का उठना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । दैनिक जीवनचर्या तथा अन्य घटनाक्रम मन को उद्वेलित करते रहते हैं । प्रतिक्रिया के रूप मेँ ये हमारे व्यवहार तथा बातचीत पर गहरा प्रभाव डालते हैं । सामाजिक प्राणी होने के नाते हम अपने परिवेश तथा इसके घटनाक्रमोँ की अनदेखी नहीँ कर सकते । एक सीमा तक सभी अपने अपने ढंग से उनका विश्लेषण करते हैँ । कुछ उदासीन तथा तटस्थ भी रहते हैँ । भिन्न-भिन्न क्षेत्रोँ मेँ कार्यरत व्यक्तियोँ की कार्यशैली भी इससे प्रभावित होती है । विशेषकर कला तथा साहित्य के क्षेत्रोँ मेँ जहाँ कल्पनाशीलता की प्रभावी भूमिका होती है । एक कवि के लिए अपने आसपास की सामान्य गतिविधियां भी विशेष हो सकती है जो अन्योँ के लिये कोई सरोकार नहीँ रखती । चीजोँ को हटकर देखने से ही कविता का जन्म होता है । संवेदनाएँ तथा अनुभूतियाँ उनमेँ लयात्मकता का भाव उत्पन्न करती हैँ ।
.....कविता लिखना कब से शुरु हुआ , ठीक ठीक याद नहीँ ! अन्य मंचोँ व पत्रोँ के साथ अब इस ब्लाग के माध्यम से भी अपनी कविताओँ को आपके समक्ष रखने का मेरा प्रयास रहेगा ।
कृपया अपने सुझाव व टिप्पणियाँ प्रेषित करते रहेँ ।
.....कविता लिखना कब से शुरु हुआ , ठीक ठीक याद नहीँ ! अन्य मंचोँ व पत्रोँ के साथ अब इस ब्लाग के माध्यम से भी अपनी कविताओँ को आपके समक्ष रखने का मेरा प्रयास रहेगा ।
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