* गीतिका *
~~
बोझिल नयन सुन्दर बहुत हमको सहज भाते रहे।
नव चाहतें सपने सुहाने नित्य दिखलाते रहे।
आने लगे हैं नील नभ पर मेघ जब श्यामल सघन।
अपनी अदाओं से मृदुल तुम स्नेह बरसाते रहे।
ऋतु सावनी बीती मगर देखो सभी मदमस्त है।
भीगे हुए पल आज भी आंखों में दिख जाते रहे।
है कौन दुनिया में जिसे सब कुछ सहन होता सदा।
हैं घाव गहरे काल के कुछ कष्ट पँहुचाते रहे।
मन में छुपाकर बात बीती सामने वह थे मगर।
सुंदर अधर पर मुस्कुराहट खूब बिखराते रहे।
यह जानकर भी जब हमें कोई शिकायत है नहीं।
नूतन बहाने नित्य ले क्यों सामने आते रहे।
जब वक्त के अनुरूप चलते कर्म करते जन सभी।
फिर भी सभी फल भाग्य में जो हैं लिखे पाते रहे।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य