Wednesday, 24 April 2024

* आ जाओ *

 ** कुण्डलिया ** 

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आ जाओ अब पास में, क्यों रहते हो दूर। 

लेकर बातें व्यर्थ की, क्यों रहते हो चूर। 

क्यों रहते हो चूर, जिन्दगी जीकर देखो। 

और स्नेह रस नित्य, हर्ष से पीकर देखो। 

कहते वैद्य सुरेन्द्र, दूरियां सभी मिटाओ। 

कल की बीती भूल, निकट जल्दी आ जाओ। 

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आओ देखें छोड़कर, नफरत ईर्ष्या द्वेष। 

और सभी से स्नेह का, कार्य करें शुभ शेष। 

कार्य करें शुभ शेष, जिन्दगी सफल बनाएं। 

और प्रगति की राह, निरंतर बढ़ते जाएं। 

कहते वैद्य सुरेन्द्र, साथ मिल कदम बढ़ाओ। 

हर दुविधा को छोड़, साथ मिल देखें आओ। 

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नफ़रत ईर्ष्या से सदा, रखें स्वयं को दूर। 

और द्वेष के कार्य में, मत हो जाना चूर।

मत हो जाना चूर, सभी को दोस्त बनाएं। 

और समय पर खूब, काम भी सबके आएं। 

कहते वैद्य सुरेन्द्र, करें हम सब का स्वागत। 

रखें हृदय को स्वच्छ, कभी न पालें नफ़रत। 

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २४/०४/२०२४ 

Tuesday, 23 April 2024

* मन में *


** गीतिका ** 

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हैं मेघ खूब छाए, चारों तरफ गगन में। 

है चाह भीगने की, बस खूब आज मन में। 


बहती हुई हवाएं, लगती बहुत सुहानी। 

अनुभूतियां सुकोमल, होती बहुत बदन में। 


वो रूठना मनाना, लगता बहुत भला हैं।

खिलता रहा हमेशा, मन प्रीति की लगन में। 


बूंदें गिरी धरा पर, जब ओस की टपक कर। 

फूली नहीं समाई, कलियां सुरम्य वन में। 


आनंद है बहुत ही, मिलता हमें सहज ही।

पड़ता नहीं खलल है, जब भी कभी अमन में। 


ये ज़िन्दगी न रुकती, हर वक्त गम खुशी है। 

बढ़ती रही हमेशा, उत्थान में पतन में।

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २२/०४/२०२४

Sunday, 26 November 2023

* धरा हमारी *

**  मुक्तक ** 

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धरा हमारी स्वच्छ हो, सबका हो उत्कर्ष।

इसी दिशा में मिल सभी, करें विचार विमर्श।

जीवन शैली श्रेष्ठ हो, रहें स्वस्थ सब लोग।

और सभी का हित लिए, हर प्राणी में हर्ष।

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २७/११/२०२३

Wednesday, 8 March 2023

यह जीवन है

 

‘यह जीवन है' (मुक्तक)

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पास कौन हो रहा है, हो रहा है कौन फेल।

है अबूझ देखिए तो, जिन्दगी का घालमेल।

आईना दिखा रहा है, सामने सभी के सत्य।

किन्तु भा रहा सभी को, स्वार्थ साधने का खेल।

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०९/०३/२०२३

Saturday, 3 September 2022

बोझिल नयन

 * गीतिका *

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बोझिल नयन सुन्दर बहुत हमको सहज भाते रहे।

नव चाहतें सपने सुहाने नित्य दिखलाते रहे। 


आने लगे हैं नील नभ पर मेघ जब श्यामल सघन।

अपनी अदाओं से मृदुल तुम स्नेह बरसाते रहे। 


ऋतु सावनी बीती मगर देखो सभी मदमस्त है।

भीगे हुए पल आज भी आंखों में दिख जाते रहे। 


है कौन दुनिया में जिसे सब कुछ सहन होता सदा।

हैं घाव गहरे काल के कुछ कष्ट पँहुचाते रहे। 


मन में छुपाकर बात बीती सामने वह थे मगर।

सुंदर अधर पर मुस्कुराहट खूब बिखराते रहे। 


यह जानकर भी जब हमें कोई शिकायत है नहीं।

नूतन बहाने नित्य ले क्यों सामने आते रहे। 


जब वक्त के अनुरूप चलते कर्म करते जन सभी।

फिर भी सभी फल भाग्य में जो हैं लिखे पाते रहे। 

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य


Saturday, 27 July 2019

प्यार है उपहार

* गीतिका * 
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प्यार है उपहार सुन्दर ज़िन्दगी का। 
खूब लें आनन्द जीभर ज़िन्दगी का। 

डूब जाएं स्नेह की गहराइयों में,  
छलछलाता इक समंदर ज़िन्दगी का। 

रोज जीभर मुस्कुराते हम जिएंगे,  
हर दिवस हो ज्यों शुभंकर ज़िन्दगी का। 

वादियां सुन्दर लुभाती हैं सभी को,  
बह चला मन स्वच्छ निर्झर ज़िन्दगी का। 

सिर्फ हम महसूस कर लें धड़कनों को, 
छोड़ पढ़ना व्यर्थ आखर ज़िन्दगी का। 

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य    

Saturday, 13 April 2019

घनाक्षरी

सभी मित्रों को दुर्गा अष्टमी और राम नवमी की
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
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* घनाक्षरी *
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शक्ति की आराधना से, कार्य होते हैं सफल। 
शक्ति ही युगों से आदि सृष्टि का आधार है। 
शक्ति हीन की कहीं भी, कोई सुनवाई नहीं।
शक्ति के बिना तो सत्य, हमेशा लाचार है। 
राष्ट्रभाव जागरण, साथ शक्ति संगठन। 
एक सोच साथ लिए, शुभ्र ये विचार है। 
भारत महान राष्ट्र, विश्व का गुरु सदैव। 
नियति का सत्य आज, ले रहा आकार है। 
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-सुरेन्दपाल वैद्य, १३/०४/२०१९