Tuesday 23 April 2024

* मन में *


** गीतिका ** 

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हैं मेघ खूब छाए, चारों तरफ गगन में। 

है चाह भीगने की, बस खूब आज मन में। 


बहती हुई हवाएं, लगती बहुत सुहानी। 

अनुभूतियां सुकोमल, होती बहुत बदन में। 


वो रूठना मनाना, लगता बहुत भला हैं।

खिलता रहा हमेशा, मन प्रीति की लगन में। 


बूंदें गिरी धरा पर, जब ओस की टपक कर। 

फूली नहीं समाई, कलियां सुरम्य वन में। 


आनंद है बहुत ही, मिलता हमें सहज ही।

पड़ता नहीं खलल है, जब भी कभी अमन में। 


ये ज़िन्दगी न रुकती, हर वक्त गम खुशी है। 

बढ़ती रही हमेशा, उत्थान में पतन में।

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २२/०४/२०२४

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