Sunday 26 November 2023

* धरा हमारी *

**  मुक्तक ** 

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धरा हमारी स्वच्छ हो, सबका हो उत्कर्ष।

इसी दिशा में मिल सभी, करें विचार विमर्श।

जीवन शैली श्रेष्ठ हो, रहें स्वस्थ सब लोग।

और सभी का हित लिए, हर प्राणी में हर्ष।

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, २७/११/२०२३

Wednesday 8 March 2023

यह जीवन है

 

‘यह जीवन है' (मुक्तक)

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पास कौन हो रहा है, हो रहा है कौन फेल।

है अबूझ देखिए तो, जिन्दगी का घालमेल।

आईना दिखा रहा है, सामने सभी के सत्य।

किन्तु भा रहा सभी को, स्वार्थ साधने का खेल।

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, ०९/०३/२०२३

Saturday 3 September 2022

बोझिल नयन

 * गीतिका *

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बोझिल नयन सुन्दर बहुत हमको सहज भाते रहे।

नव चाहतें सपने सुहाने नित्य दिखलाते रहे। 


आने लगे हैं नील नभ पर मेघ जब श्यामल सघन।

अपनी अदाओं से मृदुल तुम स्नेह बरसाते रहे। 


ऋतु सावनी बीती मगर देखो सभी मदमस्त है।

भीगे हुए पल आज भी आंखों में दिख जाते रहे। 


है कौन दुनिया में जिसे सब कुछ सहन होता सदा।

हैं घाव गहरे काल के कुछ कष्ट पँहुचाते रहे। 


मन में छुपाकर बात बीती सामने वह थे मगर।

सुंदर अधर पर मुस्कुराहट खूब बिखराते रहे। 


यह जानकर भी जब हमें कोई शिकायत है नहीं।

नूतन बहाने नित्य ले क्यों सामने आते रहे। 


जब वक्त के अनुरूप चलते कर्म करते जन सभी।

फिर भी सभी फल भाग्य में जो हैं लिखे पाते रहे। 

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य


Saturday 27 July 2019

प्यार है उपहार

* गीतिका * 
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प्यार है उपहार सुन्दर ज़िन्दगी का। 
खूब लें आनन्द जीभर ज़िन्दगी का। 

डूब जाएं स्नेह की गहराइयों में,  
छलछलाता इक समंदर ज़िन्दगी का। 

रोज जीभर मुस्कुराते हम जिएंगे,  
हर दिवस हो ज्यों शुभंकर ज़िन्दगी का। 

वादियां सुन्दर लुभाती हैं सभी को,  
बह चला मन स्वच्छ निर्झर ज़िन्दगी का। 

सिर्फ हम महसूस कर लें धड़कनों को, 
छोड़ पढ़ना व्यर्थ आखर ज़िन्दगी का। 

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-सुरेन्द्रपाल वैद्य    

Saturday 13 April 2019

घनाक्षरी

सभी मित्रों को दुर्गा अष्टमी और राम नवमी की
हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
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* घनाक्षरी *
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शक्ति की आराधना से, कार्य होते हैं सफल। 
शक्ति ही युगों से आदि सृष्टि का आधार है। 
शक्ति हीन की कहीं भी, कोई सुनवाई नहीं।
शक्ति के बिना तो सत्य, हमेशा लाचार है। 
राष्ट्रभाव जागरण, साथ शक्ति संगठन। 
एक सोच साथ लिए, शुभ्र ये विचार है। 
भारत महान राष्ट्र, विश्व का गुरु सदैव। 
नियति का सत्य आज, ले रहा आकार है। 
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-सुरेन्दपाल वैद्य, १३/०४/२०१९

Monday 16 April 2012

जीवन

एक पहेली जैसा जीवन
खुला व्योम लगता है जीवन

नील गगन सा लगता जीवन
चाहत ...जैसे इन्द्रधनुष
कुछ ही पल में लुप्तप्राय
छल देता रंगीन स्वप्न

चाहत एक अनोखा बादल
हर पल अपना रुप बदलता
क्षण भर मेँ लगता कुछ और
छल देता रंगीन स्वप्न

कौन रचयिता किसकी रचना
इस जीवन की यही विडम्बना
समय पृष्ठ पर होता अंकित
अवसाद भरा रंगीन स्वप्न

शीतल जल सा लगता प्रियकर
लेकिन छलक रहा है हर क्षण
जीवन का प्याला हाथोँ में
छलक रहा रँगीन स्वप्न

श्वेत चमकता मोती जैसा
वक्ष चीर सागर से निकला
विश्राम नहीँ उसकी नियति मेँ
बिखर रहा रंगीन स्वप्न

चिन्तन की धारा है अनुपम
मन की डोर अनन्त व्योम
जीवन में कटती है जब
छिन्न भिन्न रंगीन स्वप्न

मन की व्याकुल गति निराली
कहीं तीव्र तो कहीं क्षीण
क्षीण अगर है तो मृत्यु बन
चिर निद्रा रंगीन स्वप्न

एक पहेली जैसा जीवन
खुला व्योम लगता है जीवन

Wednesday 28 March 2012

दो शब्द

मन मेँ विचारोँ का उठना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । दैनिक जीवनचर्या तथा अन्य घटनाक्रम मन को उद्वेलित करते रहते हैं । प्रतिक्रिया के रूप मेँ ये हमारे व्यवहार तथा बातचीत पर गहरा प्रभाव डालते हैं । सामाजिक प्राणी होने के नाते हम अपने परिवेश तथा इसके घटनाक्रमोँ की अनदेखी नहीँ कर सकते । एक सीमा तक सभी अपने अपने ढंग से उनका विश्लेषण करते हैँ । कुछ उदासीन तथा तटस्थ भी रहते हैँ । भिन्न-भिन्न क्षेत्रोँ मेँ कार्यरत व्यक्तियोँ की कार्यशैली भी इससे प्रभावित होती है । विशेषकर कला तथा साहित्य के क्षेत्रोँ मेँ जहाँ कल्पनाशीलता की प्रभावी भूमिका होती है । एक कवि के लिए अपने आसपास की सामान्य गतिविधियां भी विशेष हो सकती है जो अन्योँ के लिये कोई सरोकार नहीँ रखती । चीजोँ को हटकर देखने से ही कविता का जन्म होता है । संवेदनाएँ तथा अनुभूतियाँ उनमेँ लयात्मकता का भाव उत्पन्न करती हैँ ।
.....कविता लिखना कब से शुरु हुआ , ठीक ठीक याद नहीँ ! अन्य मंचोँ व पत्रोँ के साथ अब इस ब्लाग के माध्यम से भी अपनी कविताओँ को आपके समक्ष रखने का मेरा प्रयास रहेगा ।
कृपया अपने सुझाव व टिप्पणियाँ प्रेषित करते रहेँ ।